Viral Sach – गुरुग्राम : 1947 – अंग्रेज सरकार जाते-जाते धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हिंदुस्तान – पाकिस्तान बना कर गई | हमारा गाँव गजाणे, जिला डेरा गाजी खान पाकिस्तान में आ गया | उस वक्त मेरी आयु लगभग 5-6 वर्ष थी | मुझे वह नजारा कुछ – कुछ याद है | हमारे गाँव के और आसपास के गावों के मुसलमान हमारे लोगों के पास आकर धमकाने लगे कि सब कुछ छोड़कर हिंदुस्तान चले जाओ वरना काट देंगे, इससे पहले लोग संभलते, उन्होंने हमला कर दिया और मारकाट मचा दी |
हमारे गाँव की आबादी लगभग 250 घर थे जिसमें से 60-70 घर हिंदुओं के और बाकी मुसलमानों के थे | हमारे दो घर साथ-साथ लगभग 800-1000 वर्ग गज के थे (दो भागों में) सूर्य की तरफ मूंह था | बाएँ भाग वाले घर में पशु, गाय, भैंस, घोडा तथा खच्चर बांधते थे तथा पशुओं का चारा आदि रखा होता था और दूसरा भाग जिसमें रहते थे कोने का था और बाहरी साइड दीवार के साथ पशुओं को बांधते थे |
मेरे पिताजी सात भाई थे , जिसमें एक भाई की मास्टर द्वारा मारने और स्कूल में उल्टा लटकाने से मृत्यु हो गई थी | वह बहुत ही इंटेलीजेंट होने के बावजूद किसी प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे पाया जिसकी मास्टर जी को उम्मीद भी न थी | उन्ही दिनों में मेरे सबसे छोटे चाचा ही ने पटवार का एग्जाम दिया तथा यहाँ अपने गुरु जी की गद्दी जो कि मध्य प्रदेश में गूना के पास आनंदपुर, दर्शनों के लिए आये थे और जब वह वापस पहुंचे तो रिजल्ट आ चूका था और पटवार पास हो गये और नौकरी भी लग गई |
उसके चार-पांच महीने बाद में दंगे हो गये | जिस दिन यह दंगे हो गये | जिस दिन यह दंगे हुए उस दिन लगभग 4:00 बजे शाम को घर के बाहर पानी का छिड़काव किया था | लेकी माहौल बहुत ही खराब लग रहा था | मुझे याद है कि रात को हमारे मकान की छत पर 10-12 औरतें और 5-6 बच्चे सो रहे थे |
करीब रात के 9-10 बजे घर के बाहर से आवाज आई अल्लाह हू अकबर | उसी समय हमारी चाची तथा अन्य औरतों ने बच्चों के मूंह के पानी लगा कर चारपाई के नीचे सुला दिया | जब दंगाई घर की छत पर आये तो उनके हाथों में तलवारें और बरछियाँ थी | मेरे एक चाचा और पिताजी उस समय घर पर थे और उन्होंने उनका मुकाबला किया काफी मारकाट की |
जिसमें तीन औरतों ने छत से छलांग लगाई जिसमें एक मेरी माता जी थी, पहले एक औरत ने छलांग लगाई दूसरी माता जी ने, पहले मेरी बहन को जो मात्र तीन-चार महीने की थी ऊपर से फेंका, नीचे बंदुर थी जिसमें पशु चारा करते थे | ऊपर से माताजी ने छलांग लगाई अभी वह उठ भी नहीं पाई थी कि एक अन्य औरत ने छलांग लगा दी जो मेरी माता जी की कमर पर आ गिरी जिससे माताजी काफी समय तक कमर दर्द से पीड़ित रही |
छत पर दादी जी के सिर में तलवार लगी थी, जिससे उनका सिर फट गया था और बाद में काफी समय तक उनका ईलाज चलता रहा | पिताजी ने देखा जब हालात है और दंगाई कई थे तो उन्होंने मकान की छत से उतरने की कोशिश की तो, दंगाइयों ने यह लकड़ी की सीढ़ी जो कि पिछवाड़े में उतरने के लिए लगाई थी, नीचे फेंक दी, जिससे पिताजी गिर गये और शाह सदरदीन दौड़कर आये और हथियार पुलिस चौकी से लेकर आये हम सभी खून से लथपथ थे |
दूसरे दिन सुबह गाँव का सरपंच आया | हिन्दुओं को इकठ्ठा करके एक हवेली में ले गया | हवेली की छत पर नौजवानों को पत्थरों और हथियारों के साथ रखा गया | बच्चे और औरतें अन्दर रही | इसके बाद भारतीय फ़ौज आ गई और ट्रकों में बिठाकर डेरा गाजी खान धर्मशाला में छोड़ गई, वहाँ बच्चों और औरतों के अन्दर रखा गया | आदमी लोग बाहर फ़ौज की सहायता कर रहे थे | हम अपनी जमीन, दुकान, मकान और सारा सामान वहीं छोड़ कर आये थे | तीन-चार दिन बाद मिलिट्री ने ट्रकों से हमें मुजफ्फरगढ़ पहुँचाया | वहाँ कुछ दिन कैंप में रहे और भारतीय फ़ौज हमारी रक्षा करती रही |
हमारे परिवार में मेरे माता-पिता , एक बड़ी बहन व एक छोटी बहन जो कि तीन-चार महीने की थी ओर बाकी सभी चाचा के परिवार भी साथ थे | वहाँ ज्यादातर रिश्तेदार आपस में यानि गजाने, रामन, होदी बस्ती, बातल और तौंसा आदि में होते थे | इसके बाद हमें गाड़ी में बिठाकर,भारत भेज दिया गया | बच्चों को सीट के नीचे, आदमी सीट पर और औरतों को ऊपर सीट पर भारत में अमृतसर पहुंचे, वहाँ लोगों ने हमारी मदद की, हमें नहाने के पानी और लंगर दिया |
हसके बाद हमें अम्बाला भेजा गया और वहां से हमें रोहतक भेया गया | रोहतक आकर हमें पता चला कि डेरा गाजी खान जिले को गुड़गाँव जिला अलाट किया गया है | हम लोग गुड़गाँव आ गये, गौशाला के पास कैंप था | बड़े लोग काम करने लगे और अपना परिवार पालने लगे | आहिस्ता-आहिस्ता हम लोग पढ़-लिख कर आगे बढ़े | हमारे सभी भाई, बहनों ने अपने धर्म / इज्जत और हिंदुत्व को बचाया | आज मेहनत, लगन से शिक्षित होकर अपना परिवार संभाल रहे है |
Translated by Google
The pain of 1947 partition, in the words of elders – CB Nagpal
Viral Sach – Gurugram: 1947 – On the way, the British government partitioned India on the basis of religion making it Hindustan-Pakistan. Our village Gajane, district Dera Ghazi Khan came to Pakistan. At that time I was about 5-6 years old. I remember that scene somewhat. Muslims of our village and nearby villages came to our people and started threatening them to leave everything and go to India or else they will cut them off, before people could recover, they attacked and created a ruckus.
The population of our village was about 250 houses, out of which 60-70 houses belonged to Hindus and rest to Muslims. Our two houses together were of about 800-1000 square yards (in two parts) facing the sun. In the left part of the house, animals, cows, buffaloes, horses and mules were used to tie and animal fodder etc. were kept and the second part in which they lived was in the corner and used to tie animals along the outer side wall.
My father had seven brothers, in which one brother died after being beaten by the master and hanging upside down in school. Despite being very intelligent, he could not give the correct answer to any question, which Master ji did not even expect. In those days only my youngest uncle appeared for the Patwar exam and here he had come to see the throne of his Guru ji who was at Anandpur near Guna in Madhya Pradesh and when he returned the result was out and Patwar had passed. And got a job too.
Four-five months after that there were riots. The day these riots took place. On the day when these riots happened, water was sprinkled outside the house at around 4:00 pm. But the atmosphere seemed very bad. I remember that at night 10-12 women and 5-6 children were sleeping on the terrace of our house.
Around 9-10 in the night, a voice came from outside the house, Allah Hu Akbar. At the same time, our aunt and other women put the children to sleep under the cot after applying mouthwater on them. When the rioters came on the roof of the house, they had swords and spears in their hands. One of my uncles and father were at home at that time and they fought with them and there was a lot of fighting.
In which three women jumped from the roof, in which one was my mother, first one woman jumped and the other mother, first threw my sister who was only three-four months old from above, there were monkeys below in which animals used to feed. | Mataji jumped from above, she could not even get up yet that another woman jumped and fell on my mother’s waist, due to which mother was suffering from back pain for a long time.
A sword was hit on the roof of grandmother’s head, due to which her head was torn and later her treatment continued for a long time. When father saw the situation and the rioters were many, he tried to get down from the roof of the house, then the rioters threw down the wooden ladder which was put in the backyard, due to which father fell and Shah Sadardin ran. Came and brought weapons from the police post, we were all covered in blood.
The Sarpanch of the village came the next day in the morning. Gathered the Hindus and took them to a haveli. The youths were kept with stones and weapons on the roof of the haveli. Children and women remained inside. After this the Indian Army came and took them in trucks and left them at Dera Ghazi Khan Dharamshala, where children and women were kept inside. The men were helping the army outside. We had left our land, shop, house and all our belongings there. After three-four days, the military took us to Muzaffargarh in trucks. Stayed in the camp there for a few days and the Indian Army kept protecting us.
In our family, my parents, an elder sister and a younger sister who were three to four months old and all the other uncle’s families were also together. There, most of the relatives were among themselves i.e. Gajane, Raman, Hodi Basti, Batal and Taunsa etc. After this, we were sent to India after being put in a car. Children on the bottom seat, men on the seat and women on the top seat reached Amritsar in India, there people helped us, gave us bath water and langar.
After that we were sent to Ambala and from there we were sent to Rohtak. After coming to Rohtak, we came to know that Dera Ghazi Khan district has been allotted to Gurgaon district. We came to Gurgaon, there was a camp near the Gaushala. Older people started working and raising their families. Slowly we progressed by studying and writing. All our brothers and sisters saved their religion / respect and Hindutva. Today, being educated with hard work and dedication, he is taking care of his family.
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