Gurugram

1947 के विभाजन का दर्द, बुजुर्गों की जुबानी – शांति लाल बजाज

shanti lal bajaj, 1947

 

Viral Sach – गुरुग्राम : 1947 – मेरा जन्म कोट कसरानी की बस्ती, तहसील तौंसा शरीफ जिला डेरा गाजी खान में हुआ | मुगलों के शासन काल में पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के गर्वनर के तीन बेटे थे – नवाब गाजी खान, नवाब इस्माइल खान और नवाब फ़तेह खान | इन तीनों ने अपने – अपने से डेरों को स्थापित किया | यह 1572 ईसवीं के आसपास की बात है | नवाब गाजी खान बड़े धार्मिक और संत प्रवृति के थे | वह हिन्दुओं और मंदिरों का आदर करते थे | गौसाई श्याम जी महाराज ने श्री कृष्ण जी की भूमि मथुरा से आकर संघड के निकट मंदिर का निर्माण करवाया तो नवाब स्वयं मंदिर में आकर नतमस्तक हुए |

उस समय हकीमों की संख्या अधिक थी | डॉक्टर बहुत कम थे | रोगी का मूत्र देखकर, रोग का पता चल जाता था | हकीम गोपाल दास मेहता और हकीम मोहन लाल मेहता सुप्रसिद्ध हकीम थे | व्यापार और प्रशासन के कार्यों में हिन्दओं का वर्चस्व था | हिन्दुओं की आबादी कम थी और मुसलमानों की आबादी अधिक थी | मुस्लिम अधिकतर किसान थे |

हमारी बस्ती कोट कसरानी का प्रशासन अमीर मोहम्मद खान सँभालते थे | वह नेक और मिलनसार थे | उसने हज ना जाकर हिन्दुओं की रक्षा की | इससे उनकी उदारता झलकती है |
विभाजन से पूर्व हमारा जीवन सुखी और संपन्न था | हमारा जीवन हर्षोल्लास से भरपूर था | हम अपने परिवार के साथ शांतिमय ढंग से जीवन जी रहे थे | अचानक एक आंधी के झोके ने हमारे जीवन में आलोक को लुप्त कर दिया | पाकिस्तान देश बनाने से भारत का विभाजन हुआ |

पाकिस्तान क्षेत्र से हिन्दुओं को भेजा जाने लगा | हमारे पूर्वजों और बच्चों का जीवन डाँवाडोल हो गया | जितने भी हिन्दू गावों में रहते थे, उन सब को वहाँ से लेकर तहसीलों में कुछ समय के लिए रखा गया | वहाँ सामाजिक संस्थाओं ने टेंटों की व्यवस्था की | चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था | कुछ समय पश्चात् हिन्दुओं को ट्रकों में लादकर मुजफ्फरगढ़ पहुँचाया गया | ट्रक कम थे इसलिए वहाँ प्रतीक्षा करनी पड़ती थी |

वहाँ से रेलों में भेजा गया | स्पेशल गाड़ियाँ चलाई गयी | गाड़ियों में संख्या की अपेक्षा अधिक संख्या में हिन्दुओं को भेजा गया | गाड़ी से झांक नहीं सकते थे क्योंकि जो हमारी पठान डाकुओं से रक्षा करते थे, अब उनमें हमारे कई दुश्मन हो गये थे | यदि बच्चे रोते थे तो उन्हें तुरंत चुप करा दिया जाता था | भूखे – प्यासे रह कर भी हम शांत रहे | जब वाघा बॉर्डर पहुंचे तो सब ने राहत की साँस ली | वहाँ उतर कर, हमें आत्मीयता का भाव मिला | खाने – पीने का प्रबंध किया गया |
कवि के शब्दों में –
वह वक्त भी देखा, इतिहास की घड़ियों ने,
लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई ||
वाघा बॉर्डर से हिन्दुओं को अमृतसर-जालंधर, लुधियाना, अम्बाला, कैथल, कुरुक्षेत्र, पेहवा, करनाल, पानीपत, सोनीपत तथा दिल्ली भेजा गया | कईयों को फतेहाबाद, खरखोदा, सिरसा, हिसार, भिवानी, रोहतक, झज्जर, फरुखनगर, भेजा गया | कईयों को गुडगाँव, फरीदाबाद, पटौदी, पलवल, होडल, पुन्हाना, पिनगवां, नगीना, तावडू, रावली, फिरोजपुर झिरका, नूंह, सोहना, कनीना, रिवाड़ी, नारनौल, महेंद्रगढ़ इत्यादि अन्य नगरों में विस्थापित किया गया |

डेरा गाजी खान के अधिकतर हिन्दुओं को गुडगाँव में बसाया गया | उस समय जैकबपुरा, नई बस्ती में जो मकान खाली थे, कुछ लोगों को अलाट कर दिए गये | दिल्ली रोड स्थित गौशाला के सामने टेंट मैदान में लगाकर उन्हें बसाया गया | उस समय मैं बाल्यकाल में था, परन्तु मुझे वहाँ की स्थिति अच्छी तरह याद है | पानी की कमी थी | महिलाएं दूर से पानी भर कर लाती थी | पुरुषों ने ईमानदारी तथा पुरुषार्थ से काम किया | उनमें कोई संकोच नहीं था | कुछ सब्ज़ियां और फल बेचने लगे |

कुछ ने दुकान किराये पर लेकर अपना-अपना व्यवसाय शुरू किया | कई पुरुष एमुनिशन डिपो गुडगाँव में लेबर नियुक्त हो गये और कई कैंटोनमेंट दिल्ली भी भर्ती हो गये | वे दिल्ली से सामान लाकर दुकानदारों को बेचते थे | रिक्शा चलाना, तांगा चलाना, हाथ रेहड़ी खींचना, अख़बार बेचना, सामान पहुँचाना, खाती का कार्य, बाल काटने का, दाल – आटा बनाकर बेचना, कुल्फी बेचना, पटरी पर सामान बेचना, गेहूँ बेचना, आटा बेचना इत्यादि अनेक कार्य करने लगे | कभी निराश नहीं हुए | प्रत्येक कार्य को बड़ी लगन से किया |

 

शांति लाल बजाज , 1947

फिर बच्चों को भी पढ़ाने लगे | शमशानी कैंप (अर्जुन नगर), रेलवे रोड (भीम नगर), न्यू कॉलोनी, चार- आठ मरला विकसित होने पर टेंटों से उन्हें वहाँ भेजा गया | लोगों को क्लेम की राशि दी गयी | राम नगर, शिवाजी नगर, लक्ष्मी गार्डन, मदनपुरी, कृष्णा कॉलोनी, ज्योति पार्क, शिवपुरी, सेक्टर-4 और 7 बाद में विकसित हुए | न्यू कॉलोनी में पहली से तीसरी कक्षा तक दो कमरों में पढ़ाई होती थी | अब वह मिडिल स्कूल भीम नगर में है |

अर्जुन नगर में कक्षा चार तक कक्षाएं लगती थी | उसे छप्पर वाला स्कूल कहते थे | भीम नगर में कमरे बने हुए थे | वहाँ पांचवीं कक्षायें लगती थी | आधी छुट्टी में स्कूल के बाहर खोमचे वाले मेसू, टांगरी, गुड़धानी, मूंगफली, भुने चने तथा अन्य चीजें बेचते थे | स्कूल में सूखा दूध भी दिया जाता था | पांचवी पास के बाद डी. ए. वी. उच्च विद्यालय व एस. डी. उच्च विद्यालय में बच्चे पढ़ने जाते थे | माता-पिता स्वयं कष्ट उठा कर मेहनत करते थे | महिलाओं का योगदान भी सराहनीय था | वे हरे छोले को छीलकर दुकानदारों को देती थी |

चरखा कात कर खादी की दुकान में सूत दे आती थी | उस समय सिविल लाइन में दुकान में दुकान थी | फिर कढ़ाई के लिए वस्त्र भी आने लगे, वे कढ़ाई करती थी | कई दुकानदारों के मसाले कूटती थी | कई भरी हुई रजाइयों को मोटे धागे से पिरोती थी | उन्होंने धूप, सर्दी की परवाह न करते हुए पुरुषार्थ का परिचय दिया | कई घरों में काम करती थी |

उत्तम बात यह रही थी कि किसी ने अपने बच्चों को मांगने के लिए दूसरों के द्वार पर नहीं भेजा अपितु स्वयं कष्ट सहन कर, उन्हें पढाया- लिखाया | उनके बच्चे ऊँचे पदों पर पहुंचे | अब सब घरों में तीसरी पीढ़ी आ गई है | किसी – किसी के घर चौथी

Translated by Google 

Viral Sach – Gurugram : 1947 – I was born in Kot Kasrani township, Tehsil Taunsa Sharif district Dera Ghazi Khan. During the rule of the Mughals, the governor of eastern Afghanistan had three sons – Nawab Ghazi Khan, Nawab Ismail Khan and Nawab Fateh Khan. These three established their own camps. This is around 1572 AD. Nawab Ghazi Khan was very religious and saintly. He used to respect Hindus and temples. Gausai Shyam ji Maharaj came from Mathura, the land of Shri Krishna ji and got the temple constructed near Sanghad, then the Nawab himself came and bowed down in the temple.

At that time the number of doctors was more. Doctors were very few. By looking at the urine of the patient, the disease could be known. Hakim Gopal Das Mehta and Hakim Mohan Lal Mehta were well-known doctors.
Hindus dominated the work of trade and administration. The population of Hindus was less and the population of Muslims was more. Muslims were mostly farmers.

The administration of our settlement Kot Kasrani was looked after by Amir Mohammad Khan. He was kind and friendly. He protected Hindus by not going for Haj. This shows his generosity.
Before partition our life was happy and prosperous. Our life was full of joy. We were living a peaceful life with our family. Suddenly a gust of wind destroyed the light in our lives. India was partitioned by the creation of Pakistan.

Hindus started being sent from Pakistan region. The lives of our forefathers and children were thrown into disarray. All the Hindus living in the villages were taken from there and kept in Tehsils for some time. There social organizations arranged tents. There was hue and cry all around. After some time the Hindus were loaded into trucks and taken to Muzaffargarh. Trucks were less so there had to wait.

From there it was sent in trains. Special trains were run. More number of Hindus were sent than the number in vehicles. Could not peep from the car because those who used to protect us from Pathan dacoits, now we have many enemies among them. If the children cried, they were immediately silenced. We remained calm even after being hungry and thirsty. Everyone heaved a sigh of relief when they reached the Wagah border. Getting down there, we got a sense of intimacy. Arrangements were made for food and drink.
In the words of the poet –
The clocks of history also saw that time,
Moments had done wrong, centuries got punishment ||
Hindus were sent from Wagah border to Amritsar-Jalandhar, Ludhiana, Ambala, Kaithal, Kurukshetra, Pehwa, Karnal, Panipat, Sonipat and Delhi. Many were sent to Fatehabad, Kharkhoda, Sirsa, Hisar, Bhiwani, Rohtak, Jhajjar, Farukhnagar. Many were displaced to other cities like Gurgaon, Faridabad, Pataudi, Palwal, Hodal, Punhana, Pingawan, Nagina, Tawdu, Rawli, Firozpur Jhirka, Nuh, Sohna, Kanina, Rewari, Narnaul, Mahendergarh etc.

Most of the Hindus of Dera Ghazi Khan were settled in Gurgaon. At that time the vacant houses in Jacobpura, Nai Basti were allotted to some people. They were settled by putting up a tent in the ground in front of the Gaushala located on Delhi Road. At that time I was in childhood, but I remember the situation there very well. There was a shortage of water. Women used to bring water from far away. Men worked honestly and with effort. He had no hesitation. Some started selling vegetables and fruits.

Some started their own business by renting a shop. Many men were appointed laborers in Ammunition Depot Gurgaon and many were also recruited in Cantonment Delhi. He used to bring goods from Delhi and sell them to the shopkeepers. Driving rickshaw, tonga, pulling hand hawkers, selling newspapers, delivering goods, work of eating, cutting hair, selling lentils and flour, selling kulfi, selling goods on track, selling wheat, selling flour etc. started doing many things. Never got disappointed. He did every work with great dedication.

Then started teaching the children also. They were sent there in tents after the development of Shamshani Camp (Arjun Nagar), Railway Road (Bhim Nagar), New Colony, four-eight marlas. The claim amount was given to the people. Ram Nagar, Shivaji Nagar, Laxmi Garden, Madanpuri, Krishna Colony, Jyoti Park, Shivpuri, Sector-4 and 7 developed later. In New Colony, classes from first to third were taught in two rooms. Now that middle school is in Bhim Nagar.

In Arjun Nagar, classes were held till class four. It was called thatched school. Rooms were made in Bhim Nagar. There used to be fifth classes. During the half-vacation outside the school, stall vendors used to sell mesu, tangri, gudhani, groundnut, roasted gram and other things. Dry milk was also given in the school. After 5th pass D.A. V. High School and S. D. Children used to go to high school to study. The parents themselves used to work hard after suffering. The contribution of women was also commendable. She used to peel the green chickpeas and give them to the shopkeepers.

She used to give yarn to the khadi shop after spinning the charkha. At that time there was shop after shop in Civil Line. Then clothes also started coming for embroidery, she used to do embroidery. Used to pound the spices of many shopkeepers. Used to thread many stuffed quilts with thick thread. He gave the introduction of effort without caring about the sun and cold. Used to work in many houses.

The best thing was that no one sent their children to the door of others to beg, but by themselves suffering, taught and wrote them. His children reached high positions. Now the third generation has come in all the houses. fourth in someone’s house

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