Gurugram

1947 के विभाजन का दर्द, बुजुर्गों की जुबानी – टी डी आहूजा

TD Ahuja, 1947

 

Viral Sach – गुरुग्राम : 1947 – मेरा जन्म 20 फ़रवरी 1937 को हजरत सखी सरोवर में हुआ था | सखी सरोवर जो सुलेमान के पहाड़ में बसी हुई एक छोटी-सी रियासत ठी, जिसका नवाब जमाल खान लंगारी था | यहाँ की बोली सैराकी है | इसके साथ-साथ बलूची जबान भी यहाँ के लोग बोलते है | लांगरी, खोसे मजारी, वीरानी, गुरचानी, हेतराम बुजदार, केसरानी यहाँ के नम्बरदार (जागीरदार) है |

हेतराम वास्तव में खत्री शहर शब्द का अभिप्राय है | बलोच कबीलों की यहाँ तकसीम (विभाजन) अंग्रेजों ने की | यह सब कबाइली सरदार थे | यहाँ पर कोई मंदिर नहीं था | केवल एक दरगाह है, कहते है इस दरगाह में कभी हिन्दू देवताओं की तस्वीरें थी, जो बाद में इस्लाम के आने पर नष्ट कर दी गई |

सिखों के पहले गुरु नानक देव जी महाराज यहाँ पर पधारे थे | यहाँ पर हर साल बैसाखी के त्यौहार पर सिख भाई आते थे | उनको पीर भाई कहकर लोग संबोधित करते थे | सखी सरोवर का असली नाम “जगाह” था जो बाद में सखी सरोवर के नाम से जाना जाने लगा | यह छोटी-सी रियासत डेरा गाजी खान से कोई 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | सखी सरोवर के आगे चढ़ाई शुरु होती है और थोड़ी दूरी पर चोटी जरीन व चोटीवाला के छोटे कस्बे है जहाँ ऊँटों की सहायता से पहुंचा जा सकता है |

1947 के बंटवारे तक मैं तीसरी क्लास पास करके चौथी क्लास में पढ़ता था | अप्रैल में यह सेशन शुरू होता था | अपने परिवार के साथ सिन्धु नदी को मिलिट्री ट्रक में मुजफ्फरगढ़ से रेलगाड़ी में सवार होकर हिंदुस्तान की तरफ चल पड़े | खानेवाल से जब ट्रेन रवाना हुई तो कुछ मुसलमानों ने चलती ट्रेन पर गोलियां चलाई लेकिन लोगों ने फ़ौरन ट्रेन की खिड़कियाँ बंद करके अपने आप को बचाया | हमारे कस्बे में 32 हिन्दुओं को बलोच कबीले के लोगों ने कत्ल किया था | मेंसे अपने दो भाईयों के साथ जानकार मुसलमान के घर में शरण ली |

सबसे पहले मैं अपने परिवार के साथ अटारी बॉर्डर पर उतरा | हमें वहाँ टेंटों में रखा गया | वहाँ से हम जालंधर में आ गये | इसके बाद हम फ़रीदाबाद में बस गये | वहाँ से दसवीं पास करके टीचर ट्रेनिंग ली फिर मैं 1 साल दिल्ली में क्लर्क रहा | फिर टीचर बन गया और 28 फ़रवरी 1997 को मैं रिटायर होकर दिल्ली में बस गया |

 

TD Ahuja, 1947

Translated by Google 

Viral Sach – Gurugram: I was born on 20 February 1937 in Hazrat Sakhi Sarovar. Sakhi Sarovar, which was a small princely state situated in the mountain of Suleman, whose Nawab was Jamal Khan Langari. The dialect here is Sairaki. Along with this, people here also speak Balochi language. Langri, Khose Mazari, Virani, Gurchani, Hetram Bujdar, Kesrani are the Nambardars (Jagirdars) of this place.

Hetram is actually the meaning of the word Khatri city. The division of the Baloch tribes here was done by the British. All these were tribal chieftains. There was no temple here. There is only one dargah, it is said that this dargah once had pictures of Hindu deities, which were later destroyed upon the arrival of Islam.

The first Guru Nanak Dev Ji Maharaj of the Sikhs visited here. Sikh brothers used to come here every year on the festival of Baisakhi. People used to address him as Pir Bhai. The original name of Sakhi Sarovar was “Jagah” which later came to be known as Sakhi Sarovar. This small princely state is situated at a distance of about 40 kilometers from Dera Ghazi Khan. The ascent begins in front of Sakhi Sarovar and at a short distance are the small towns of Choti Zarin and Chotiwala which can be reached with the help of camels.

Till the partition of 1947, I used to study in the fourth class after passing the third class. This session used to start in April. With his family, he boarded a train from Muzaffargarh in a military truck across the Indus River and headed towards India. When the train left from Khanewal, some Muslims opened fire on the moving train, but people immediately saved themselves by closing the windows of the train. In our town, 32 Hindus were killed by Baloch tribesmen. I took refuge in the house of a learned Muslim along with my two brothers.

First of all I landed at Attari border with my family. We were kept there in tents. From there we came to Jalandhar. After that we settled in Faridabad. After passing 10th from there, I took teacher training, then I worked as a clerk in Delhi for 1 year. Then became a teacher and on 28 February 1997 I retired and settled in Delhi.

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