Gurugram

1947 के विभाजन का दर्द, बुजुर्गों की जुबानी – ओ पी मनचंदा

OP Manchanda, 1947

Viral Sach – गुरुग्राम : 1947 – भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय मैं लगभग साढ़े 5 साल का था उस समय की कुछ स्मृतियाँ मेरे जहन में आती है | अपने घरों को एक दम छोड़कर जिस अवस्था में खड़े थे | मेरे माता-पिता हम तीनों भाइयों को लेकर स्टेशन पर ले आये और मालगाड़ी के खुले डिब्बों में सवार हो गये |

अन्य बहुत से लोग भी सवार थे | गाड़ी चली और हमें लाहौर उतार दिया | फिर एक कैंप में जहाँ पहले ही बहुतसे हिन्दू लोग थे उनमें शामिल हो गये | वहाँ से मिलिट्री की गाड़ियों में सैनिकों की सुरक्षा में हमें अमृतसर में एक रिफ्यूजी कैंप में जो पहले से ही स्थापित किया था उसमें ठहराया गया |

उन दिनों का वह टेंट का जीवन मुझे कुछ याद है | निसंदेह, दुश्वारियों, कष्टों व पीडाओं को व्यक्त करने और लिखने में मेरा मन बेचैन हो जाता है | किन्तु अपनी धर्म की रक्षा और देशभक्ति के लिए सभी कष्ट बड़े संयम से सहे | उन दिनों सरकार ने हमारा भरण-पोषण एवं वस्त्रों से हमारी सहायता की |

धीरे-2 विस्थापित लोग भिन्न-2 जगहों पर सेटल होने लगे | बड़ी कठिन तपस्या एवं परिश्रम से स्वयं तथा अपने परिवारों को संभाला | एक दुखद घटना घटी थी, हमारा एक चचेरा भाई रास्ते में भूख के कारण मर गया | हे प्रभु, ऐसा समय कहीं भी और कभी न आये |

इस दुखद त्रासदी को भारत में जन्में बच्चे शायद अनुभव न करे, परन्तु लगभग 10 लाख लोगों को मृत्यु को गले लगाना बहुत हृदय विदारक है |

मैं समझता हूँ ऐसे लोगों को सरकार को विशेष सम्मान देना चाहिए | अंत में यही कामना करता हूँ कि ईश्वर विश्व में सभी को सद्बुद्धि प्रदान करें |

Translated by Google 

Viral Sach – Gurugram: 1947 – At the time of partition of India-Pakistan, I was about 5 and a half years old, some memories of that time come to my mind. The condition in which they were standing, leaving their homes at once. My parents took all three of us brothers to the station and boarded the open coaches of the goods train.

Many other people were also aboard. The car started and dropped us at Lahore. Then in a camp where there were already many Hindus, he joined them. From there, in military vehicles, under the security of soldiers, we were accommodated in a refugee camp already established in Amritsar.

I remember that tent life of those days. Undoubtedly, my mind becomes restless in expressing and writing about miseries, sufferings and pains. But for the protection of his religion and patriotism, he endured all the hardships with great restraint. In those days the government helped us with our food and clothes.

Gradually the displaced people started settling at different places. He took care of himself and his family with great austerity and hard work. A sad incident happened, one of our cousins died of hunger on the way. O Lord, may such a time never come anywhere else.

Children born in India may not experience this tragic tragedy, but it is very heartbreaking to see nearly 1 million people embrace death.

I think the government should give special respect to such people. In the end, I wish that God blesses everyone in the world with good sense.

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