Gurugram

1947 के विभाजन का दर्द, बुजुर्गों की जुबानी – ओम प्रकाश भूटानी

op bhutani, 1947

 

Viral Sach – गुरुग्राम : 15 अगस्त 1947 को जब भारत को आज़ादी मिली मेरी आयु केवल 9 वर्ष की थी, मेरा नाम ओम प्रकाश भूटानी है | मेरी जन्म तिथि 2 दिसंबर 1938 है | मेरे पिता जी का नाम स्वर्गीय श्री रामचंद्र भूटानी है उनका स्वर्गवास जब हुआ मेरी आयु केवल 3 वर्ष की थी | मेरा जन्म खास डेरा गाजी खान में हुआ था, जो अब दुर्भाग्यश देश विभाजन से पाकिस्तान का हिस्सा बन गया है |

देश विभाजन की त्रासदी हम सब को झेलनी पड़ी | पाकिस्तान एक देश के रूप में आया जिसमें बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों की थी | धार्मिक कट्टरता और आतंकवादी समाज के जुल्मों को पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं और सिखों को झेलना पड़ा | अपने धर्म की रक्षा और राष्ट्रप्रेम के कारण वह जुल्मों का शिकार हुए और अपने घर-बार तथा सभी सामान वहीं पाकिस्तान में छोड़कर बहती हुई खून की नदियों को पार करते हुए हिंदुस्तान की ओर आने लगे अंद शरणार्थी बन कर रहना पड़ा |

यह सारा खुनी खेल और देश बंटवारा अंग्रेज शासकों की कुटिल राजनीति ‘फूट डालो” और आराम से देश से भागों और अच्छे भी कहलाओ मुख्य कारण था | इस देश बंटवारे से अब तक हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच कटुता बनी हुई है | इन जुल्मों का शिकार लगभग 10 लाख हिन्दू और सिखों को अपनी जान गंवानी पड़ी | जैसे तैसे जो लोग अपनी जान बचाकर हिंदुस्तान में प्रवेश कर गये वह बहुत समय तक शरणार्थी बन कर रहे | हिंदुस्तान के कई राज्य और विभिन्न शहरों में तम्बुओं में रहे अपनी मेहनत और विश्वास से पुरुषार्थी बनकर अपने जीवन का अपने परिवार का लालन-पालन किया |

जो मुझे याद है जो मेरे जीवन और परिवार ने भुगता है मैं उन दर्द भरी घटनाओं का वर्णन करूँगा | जब हिन्दू समाज पर पाकिस्तान में, यह जुल्म की घटनाएँ आरम्भ हुई | अपने गाँव से बहुत सारे लोग डेरा गाजी खान में आ गये थे | यह जुल्म देहाती इलाकों में अधिक हुआ | कई जगहों पर ट्रेनों में सवार लोगों को पूरी की पूरी तरह कत्ल कर दिया गया था | खास डेरा गाजी खान में इस प्रकार की कोई घटनाएँ नहीं हुई |

यह सुनने में आया था कि डेरा गाजी खान को श्री गोपीनाथ जी ने स्वयं आकर बचाया है | डेरा गाजी खान में श्री गोपीनाथ जी का एक मंदिर था जिस पर लोगों का बहुत विश्वास था | जब कत्लेआम का सिलसिला चल रहा था लोग इधर-उधर जान बचाकर हिंदुस्तान की ओर जाने का प्रयास कर रहे थे | डेरा गाजी खान में बहुत सारे गोरखा सेना पहुँच गई थी | लोगों को अपने संरक्षण में हिंदुस्तान की ओर निकाल कर ले आई | डेरा गाजी खान एक बहुत बड़ा शहर था | ब्लाक नं. 1 से ब्लाक नं. 14 तक हिन्दू आबादी थी और शेष ब्लाक नं. 15 से 50 ब्लाक में मुसलमानों की आबादी अधिक थी |

जिस समय इस प्रकार की घटनाएँ चल रही थी मैं एक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा में भी जाता था, जहाँ एक रुमाल के माध्यम से यह जागृति उत्पन्न की जाती थी कि गोवा किसका ?, कश्मीर किसका ? जो बच्चा भागते-2 रुमाल पहले उठा लेता था, वह विजयी घोषित होता था | दूसरी घटना यह देखि कि एक बम धमाका हुआ बड़ी दूर से धुंए का गुबार दिखाई दिया | एक शव को भी देखा जिसे एक खाट पर उठाकर शमशान की ओर ले जा रहे थे | वह शव एक आर. एस. एस. से जुड़े व्यक्ति का बताया गया जिसकी मृत्यु उस बम धमाके में हुई थी | एक भयानक माहौल बना हुआ था, सभी लोग डरे हुए थे |

इस डर-भय के माहौल में लोगों ने अपने घरों की छतों पर मिर्ची और कांच की बोतलें काफी संख्या में रखी हुई थी | यह कहते हुए सुना जाता था जब कही मोहल्ले में आतंकी हमला हो तो लोग अपनी छतों पर चढ़ जाएँ और उन पर मिर्ची फैकें और कांच की बोतलों को उन पर फैंके | परन्तु भगवान् श्री गोपीनाथ जी की कृपा से डेरा गाजी खान में ऐसी कोई घटना नहीं हुई |

लोग अपने घरों में सब कुछ छोड़कर हिंदुस्तान की ओर आने लगे यही सोचा था कि जल्दी माहौल ठीक हो जाएगा , हम सब वापस अपने घरों में लौट आयेगें परन्तु वह समय अभी तक नहीं आया | भारत की गोरखा सेना शहर में पहुँच गई | उनके संरक्षण में लोग हिंदुस्तान की ओर चल पड़े |
मुझे याद है कि हमारी रेल मुजफ्फरगढ़ में रुकी हुई थी | खचाखच भरी हुई ट्रेन में बाहर लोग लटके हुए थे यहाँ ताकि इंजन पर भी बाहर लोग लटक कर खड़े हुए थे |

गाड़ी से उतर कर नजदीक के कुँए पर लोग नहाने का लुत्फ़ भी ले रहे थे, मैं भी कुँए पर नहाया था | इसी बीच सुनने में आया कि किसी जगह पर आतंकी गाड़ी पर हमला करने के आये थे परन्तु एक गोरखा सैनिक ने गोलियां चलाकर उन को भगाने में कामयाब रहा | गाड़ी वहाँ से चली और अटारी के रास्ते हिंदुस्तान में प्रवेश करने के बाद लोगों की जान में जान आई और भय का माहौल समाप्त हुआ |

सबसे पहले हमें करनाल में कुछ दिन तम्बू में रखा गया फिर रोहतक में रखा गया | महात्मा गाँधी की हत्या की खबर में हमें रोहतक कैंप में लाऊडस्पीकर के माध्यम से पता चली |

इसके बाद जो शरणार्थी जिला डेरा गाजी खान से सम्बंधित थे उन्हें गुडगाँव शहर लाया गया और कैम्पों में रखा गया | कैंप भी तीन प्रकार के थे छोटे और बड़े | गुड़गाँव में पुरानी रेलवे रोड के निकट जहाँ आज दयानंद कॉलोनी बसी हुई है वहाँ बड़ा कैंप लगाया गया था | गोशाला के सामने मैंदान में बड़ा तम्बू लगाया गया था |

उसके बाद पक्की न्यू कॉलोनी बसाई गई, भीमनगर में कच्चे और छोटे-2 मकान बनाये गये | अर्जुननगर बाद में बनाया गया पहले इसका नाम शमशानी कैंप था | बाद में इसका नाम बदला गया | इन सब शरणार्थियों को इन कच्चे – पक्के मकानों में शिफ्ट किया गया | लोगों ने अपने पुरुषार्थ से, मेहनत से जीवन को चलाने के लिए विभिन्न प्रकार के काम किये | रेल की पटरियों से कोयला चुनकर, गाँव-2 जाकर विभिन्न प्रकार के काम किये और अपना और अपने परिवार की आने वाली पीढ़ी का हौसला बढ़ाया |

रोहतक कैंप में जब हमें गुड़गाँव कैंप में रखा गया | मैं दूसरी कक्षा में दाखिल हुआ यह स्कूल कक्षा 1 से चौथी कक्षा तक टेंटों में चलता था | भीमनगर गुरु द्रोणाचार्य मंदिर के सामने स्कूल के टेंट लगाये गये थे इसके बाद पांचवी से दसवीं कक्षा तक शिक्षा राज्य के हाई स्कूल गुड़गाँव जो कामन सराय के सामने है ग्रहण की |

दसवीं कक्षा पास करने के बाद आगे कॉलेज में दाखिला लेने के लिए पैसे नहीं थे | पढाई छोड़ दी और इधर – उधर काम करने के लिए भटकता रहा | स्वर्गीय माता श्री मति रिजो बाई बड़ी मेहनत और मजदूरी करके घर का गुजारा चलाती थी जो भी शिक्षा मैंने ग्रहण की सरकारी नौकरी के साथ-2 पढाई चालू रखने से ही प्राप्त की | क्लर्क के पद पर भर्ती हुआ और अपने मेहनत से क्लास वन के पद पर पहुँच गया और दिसम्बर 1996 में हरियाणा सरकार की सेवा से रिटायर हो गया |

रिटायरमेंट के बाद जिला ब्लाइंडनेस कण्ट्रोल सोसाइटी का काम सरकार ने मुझे सौंपा इसके माध्यम से पूरे जिले में अनेकों स्थानों पर तीन चार वर्ष तक अनेकों आँखों के कैंप लगाये और ऑपरेशन कराये | मुझे इस कार्य में मन को शांति मिलती थी | इक निराश्रित बच्चों की सहायता के लिए निराश्रित नाम से सेवा समिति भी बनाई थी जिसमें पढ़ाई करने वाले गरीब बच्चों को नकद राशि दी जाती थी |

आज भी इसकी जिम्मेदारी श्री अमृत खरबन्दा जी को सौंप रखी है |

 

1947

Translated by Google 

Viral Sach – Gurugram: When India got independence on 15 August 1947, I was only 9 years old, my name is Om Prakash Bhutani. My date of birth is 2 December 1938. My father’s name is Late Shri Ramchandra Bhutani, I was only 3 years old when he passed away. I was born in Khas Dera Ghazi Khan, which has now unfortunately become a part of Pakistan due to the partition of the country.

We all had to face the tragedy of the partition of the country. Pakistan came into being as a country in which the majority of the population was of Muslims. Minority Hindus and Sikhs in Pakistan had to bear the oppression of religious fanaticism and terrorist society. Due to the protection of his religion and patriotism, he became a victim of atrocities and leaving his home and all his belongings in Pakistan, crossed the rivers of blood and started coming towards India and had to live as a refugee.

This whole bloody game and partition of the country was the main reason for the crooked politics of the British rulers to “divide” and comfortably part from the country and also be called good. Bitterness has remained between India and Pakistan since the partition of this country. About 10 lakh Hindus and Sikhs had to lose their lives due to these atrocities. Somehow those who entered India after saving their lives remained refugees for a long time. Lived in tents in many states and different cities of India, with his hard work and faith, being a man, he raised his family in his life.

I will describe the painful incidents that I remember that my life and family have suffered. When the incidents of atrocities on Hindu society started in Pakistan. Many people from their village had come to Dera Ghazi Khan. This oppression happened more in the rural areas. In many places, the people boarding the trains were completely slaughtered. No such incidents took place in Khas Dera Ghazi Khan.

It was heard that Dera Ghazi Khan was saved by Shri Gopinath ji himself. There was a temple of Shri Gopinath ji in Dera Ghazi Khan on which people had a lot of faith. When the process of massacre was going on, people were trying to save their lives here and there and go towards India. Many Gurkha army had reached Dera Ghazi Khan. Brought people out to India under her protection. Dera Ghazi Khan was a very big city. Block no. 1 to Block no. There was Hindu population till 14 and remaining block no. The population of Muslims was more in 15 to 50 blocks.

At the time when such incidents were going on, I used to go to the branch of a Rashtriya Swayam Sevak Sangh, where through a handkerchief this awareness was generated that whose is Goa?, whose is Kashmir? The child who used to pick up the handkerchief first while running, was declared victorious. The second incident was to see that a bomb exploded and a plume of smoke was visible from a long distance. Also saw a dead body which was being carried on a cot towards the crematorium. That body is an R.K. S. S. The person associated with the organization was told who had died in that bomb blast. A terrible atmosphere was created, everyone was scared.

In this atmosphere of fear, people kept chillies and glass bottles in large numbers on the roofs of their houses. It was heard saying that whenever there is a terrorist attack in a locality, people should climb on their roofs and throw chillies and glass bottles at them. But by the grace of Lord Shri Gopinath ji, no such incident took place in Dera Ghazi Khan.

People left everything in their homes and started coming towards India, thinking that soon the atmosphere will be fine, we all will return to our homes, but that time has not come yet. India’s Gurkha army reached the city. Under his protection people started towards India.
I remember that our train was stopped at Muzaffargarh. People were hanging outside in the overcrowded train, so that people were standing outside hanging on the engine as well.

After getting down from the car, people were also enjoying taking a bath at the nearby well, I also took a bath at the well. Meanwhile, it was heard that at some place terrorists had come to attack the vehicle, but a Gurkha soldier managed to drive them away by firing bullets. The car started from there and after entering India through Attari, people came to life and the atmosphere of fear ended.

First we were kept in a tent for a few days in Karnal and then kept in Rohtak. In the news of the assassination of Mahatma Gandhi, we came to know through loudspeaker in Rohtak camp.

After this the refugees who belonged to the district Dera Ghazi Khan were brought to Gurgaon city and kept in camps. Camps were also of three types, small and big. A big camp was set up near the old railway road in Gurgaon where Dayanand Colony is situated today. A big tent was put up in the field in front of the cowshed.

After that a permanent new colony was established, kutcha and small houses were built in Bhimnagar. Arjunnagar was built later, earlier its name was Shamshani Camp. Later its name was changed. All these refugees were shifted to these kutcha-pucca houses. People did different types of work to run life with their efforts and hard work. Collecting coal from railway tracks, went to village-2 and did various types of work and encouraged himself and the coming generations of his family.

In Rohtak camp when we were kept in Gurgaon camp. I entered in class II. This school used to run in tents from class I to class IV. The school tents were set up in front of the Bhimnagar Guru Dronacharya Temple, after which education from fifth to tenth grade was taken up in the state high school Gurgaon which is opposite Kaman Sarai.

After passing class X, there was no money to take further admission in college. Left studies and kept wandering here and there to work. Late mother Shri Mati Rijo Bai used to work hard and work hard to earn a living at home. Recruited to the post of Clerk and reached the post of class one with his hard work and retired from the service of Haryana Government in December 1996.

After retirement, the government entrusted me with the work of the District Blindness Control Society, through which many eye camps and operations were conducted at many places in the entire district for three to four years. I used to get peace of mind in this work. To help the destitute children, a service committee was also formed in the name of destitute, in which cash was given to the poor children studying.

Even today its responsibility has been handed over to Shri Amrit Kharbanda ji.

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