Gurugram

1947 के विभाजन का दर्द, बुजुर्गों की जुबानी – विजय कुमार मेहता

Vijay kumar mehta, 1947

 

Viral Sach – गुरुग्राम : 1947 – विभाजन से पूर्व निवास स्थान गाँव मंगरोठा तहसील तौंसा शरीफ जिला डेरा गाजी खान, पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी के नाम मात्र से उस समय की घटनाओं का स्मरण होते ही मनुष्य के रोंगटे खड़े हो जाते है |

हमारा मूल स्थान गाँव मंगरोठा तहसील तौंसा शरीफ जिला डेरा गाजी खान था | परन्तु विभाजन से पूर्व मेरे बड़े भाई मिलिट्री में अकाउंटेंट पद क्वेटा बलूचिस्तान में कार्यरत थे | मेरे बड़े भाई जून 1947 में हमें क्वेटा बलूचिस्तान ले गये | मेरे पिताजी और दादा जी तथा परिवार मंगरोठा में रह रहे थे |

क्वेटा में जहाँ हम रहते थे लगभग 25 मकानों का एक सेक्टर था | हमारा मकान मेन सड़क पर था | 14 अगस्त 1947 रात को आतंकी बलूचों ने हमारे थर के सामने दंगा करना शुरू कर दिया | सेक्टर के लोगों ने मिलकर उनका डटकर मुकाबला किया |

15 अगस्त 1947 प्रात: काल सभी सो रहे थे कि लगभग 25-30 पठान बंदूकों, कुल्हाडियों तथा पेट्रोल की बोतलों के साथ आये | सबसे पहले हमारे मुख्य द्वार पर पेट्रोल छिड़का फिर कुल्हाडियों से तोडा और बंदूकों से फायर करना शुरू कर दिया | हम जिस हालत में थे उठाकर छत की ओर भागे |

पीछे गोलियां मकान के पिछवाड़े वाले पड़ोसियों ने अपने घरों की चारपाइयों को सहन में डालकर उस पर घर के बिस्तर डाल दिए | अत: छत से कूद कर सब ने जान बचाई | वहाँ से गोलियों की बौछार से बचते हुए सड़क पर एक सेठ के तहखाने में पहुंचे | वहां पर 60-70 लोग थे | वहाँ पर 10 दिन रहना पड़ा |

राशन समाप्त होने पर बड़ों ने भूखा रह कर बच्चों को दिन में दो बार आधी-2 रोटी का टुकड़ा दिया | बाद में हिन्दू मिलिट्री हमें रेलवे स्टेशन पर ले गयी | गाड़ी मिलने पर गाड़ी की खिड़कियाँ बंद करके हम लोगों ने फट्टों के नीचे छुप कर जान बचाई |
जब हमारी गाड़ी हैदराबाद स्टेशन पर पहुंची, तो स्टेशन पर मुसलमानों ने कत्लेआम शुरू कर दिया | गाड़ी के चार डिब्बे आगे और चार डिब्बे पीछे के, सभी को क़त्ल कर दिया |

परमपिता की कृपा से मिलिट्री के आने पर तीन डिब्बे बच गये और उन डिब्बों में हम भी बच गये | ट्रेन दिल्ली पहुंची तो वहाँ बम्ब फट गये | बचते – बचाते कर्फ्यू में हम लाजपत राय मार्किट (लाल किले के सामने) एक कैंप में पहुंचे, वहाँ से 5 दिन बाद हमें पटना की गाड़ी में भेज दिया गया |

पटना में हमें फुलवारी कैंप जहाँ नेहरु जी, गाँधी जी आदी नेताओं को जेल में रखा गया था, उन बैरकों में रखा गया | मेरे पिताजी, दादा जी और बाकी परिवार 2-3 मास के प्रयासों से आकर मिले | फुलवारी में 6 मास तक रहे और जीवन की कठिनाईयों का सामना किया |

अनेक प्रयासों के बाद मेरे भाई की दानापुर के मिलिट्री कार्यालय में अकाउंटेंट के पद पर नियुक्ति हुई | उनको हैदराबाद जाने के आदेश हुए | हैदराबाद की त्रासदी को हम अभी तक नहीं भूले थे, अत: मेरे भाई ने हैदराबाद जाने से इंकार कर दिया | फुलवारी से फिर हम गुडगाँव आये | यहाँ पर अनेक कठिनाईयों का सामना करते हुए जीवन यापन शुरू किया |

Annu Advt, 1947

Translated by Google 

Viral Sach – Gurugram: 1947 – Residence before partition Village Mangrotha Tehsil Taunsa Sharif District Dera Ghazi Khan, Pakistan Just by the name of the tragedy of partition one gets goosebumps remembering the events of that time.

Our native place was Village Mangrotha Tehsil Taunsa Sharif District Dera Ghazi Khan. But before partition, my elder brother was working as an accountant in the military in Quetta, Balochistan. My elder brother took us to Quetta Balochistan in June 1947. My father and grandfather and family were living in Mangrotha.

Where we lived in Quetta, there was a sector of about 25 houses. Our house was on the main road. On the night of 14 August 1947, terrorist Balochs started rioting in front of our Thar. The people of the sector unitedly fought against them.

On 15th August 1947 morning everyone was sleeping when about 25-30 Pathans came with guns, axes and petrol bottles. First they sprinkled petrol on our main gate, then broke it with axes and started firing with guns. Picking up the condition we were in, ran towards the terrace.

The neighbors in the backyard of the house put the cots of their houses in the shelter and put the beds of the house on it. So everyone saved their lives by jumping from the roof. From there, avoiding the barrage of bullets, reached the basement of a Seth on the road. There were 60-70 people there. Had to stay there for 10 days.

When the ration was over, the elders starved and gave half a piece of roti to the children twice a day. Later the Hindu military took us to the railway station. On getting the car, we saved our lives by closing the windows of the car and hiding under the planks.
When our train reached Hyderabad station, Muslims started killing at the station. Four coaches in the front and four coaches in the rear of the car were killed.

By the grace of the Supreme Father, when the military arrived, three coaches were saved and we were also saved in those coaches. When the train reached Delhi, bombs exploded there. Avoiding curfew, we reached a camp at Lajpat Rai Market (in front of Red Fort), from there after 5 days we were sent in a train to Patna.

In Patna, we were kept in the barracks of Phulwari Camp where leaders like Nehru ji, Gandhi ji were kept in jail. My father, grandfather and the rest of the family came and met after 2-3 months of efforts. Stayed in Phulwari for 6 months and faced the difficulties of life.

After many efforts, my brother was appointed as an accountant in the military office of Danapur. He was ordered to go to Hyderabad. We had not yet forgotten the Hyderabad tragedy, so my brother refused to go to Hyderabad. From Phulwari we again came to Gurgaon. Facing many difficulties, he started living here.

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