National

Green Hydrogen – 180 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है एशिया में बाजार

green hydrogen

 

Green Hydrogen – एशिया की चार सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया) में कार्बन एमिशन पर लगाम लगाते हुए नेट जीरो के लक्ष्य हासिल करने के प्रयासों के चलते ग्रीन हाइड्रोजन (H2) बनाने वाली मशीनों (इलेक्ट्रोलाइज़र) की मांग तेजी से बढ़ सकती है।

एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा गठित हाई-लेवल पॉलिसी कमीशन ऑन गेटिंग एशिया टू नेट जीरो की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों में मुख्य औद्योगिक उपयोग के लिए 2050 तक ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइज़र का बाजार मिलकर 180 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

“एशिया के औद्योगिक दिग्गजों को कार्बन मुक्त करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन” शीर्षक वाली रिपोर्ट चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया में ग्रीन हाइड्रोजन की मांग को पूरा करने के लिए जरूरी इलेक्ट्रोलाइज़र की भविष्य क्षमता और दिशा का आकलन करती है।

ग्लोबल एफिशिएंसी इंटेलिजेंस द्वारा किया गया यह अध्ययन विभिन्न कार्बन एमिशन कम करने की स्थितियों के तहत तीन प्राथमिक उद्योगों – इस्पात, अमोनिया और मेथनॉल – में ग्रीन हाइड्रोजन की भूमिका को देखता है। इन क्षेत्रों में ग्रीन हाइड्रोजन रिन्यूबल एनेर्जी से चलने वाले इलेक्ट्रोलिसिस की मदद से कार्बन एमिशन करने वाली प्रक्रियाओं को बदलकर प्रदूषण को काफी कम कर सकता है।

अगर ये चार देश अपने घोषित नेट जीरो लक्ष्यों को पूरा करते हैं, तो विश्लेषण 2050 तक इन तीन उद्योगों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइज़र के बाजार की संभावना में भारी वृद्धि का अनुमान लगाता है:
चीन: 2050 तक 85 अरब डॉलर, 2030 में 22 अरब डॉलर
भारत: 2050 तक 78 अरब डॉलर, 2030 में 4 अरब डॉलर
जापान: 2050 तक 9 अरब डॉलर, 2030 में 1 अरब डॉलर
दक्षिण कोरिया: 2050 तक 8 अरब डॉलर, 2030 में 1 अरब डॉलर

इस प्रकार अनुमान लगाया जाता है कि कुल मिलाकर इलेक्ट्रोलाइज़र का बाजार 2050 तक 180 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा, जिसमें 2030 और 2040 के बीच वार्षिक वृद्धि दर 12% तक हो सकती है. यह सामान्य व्यापार परिस्थिति के तहत बाजार क्षमता से लगभग पांच गुना अधिक है।

कुल इलेक्ट्रोलाइज़र बाजार का आकार और भी बड़ा होगा क्योंकि इसमें अन्य उद्योगों के लिए इसके उपयोग भी शामिल हैं। अध्ययन विश्लेषण किए गए चार देशों और तीन उद्योगों में से प्रत्येक के लिए इलेक्ट्रोलाइज़र बाजार क्षमता को भी अलग अलग बताता है।

यह रिपोर्ट ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण के विकास और अपनाने को गति देने के उद्देश्य से नीतिगत सिफारिशों को प्रस्तुत करती है। नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के लोगों, निवेशकों और थिंक टैंकों के लिए ये लक्षित रणनीतियां सामूहिक रूप से इन देशों में नेट जीरो उद्योग की दिशा में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और उपयोग के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने का लक्ष्य रखती हैं।

अली हसनबेगी, ग्लोबल एफिशिएंसी इंटेलिजेंस के संस्थापक, सीईओ और शोध निदेशक ने कहा, “H2-DRI इस्पात बनाने और ग्रीन अमोनिया और मेथनॉल का उत्पादन करने में ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करना इन प्रमुख क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने के लिए आवश्यक है। हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि इन प्रमुख एशियाई देशों में इलेक्ट्रोलाइज़र का बाजार बहुत बड़ा हो सकता है और जो इसका फायदा उठाएंगे उन्हें काफी लाभ होगा।

एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट में जलवायु की एसोसिएट डायरेक्टर केट लोगान ने कहा, “ये निष्कर्ष इस बात को साफ़ करते हैं कि कैसे महत्वाकांक्षी नेट जीरो लक्ष्य इलेक्ट्रोलाइज़र जैसी नई और महत्वपूर्ण तकनीक की मांग को आकार दे सकते हैं।

यह मांग इस क्षेत्र और दुनिया को कार्बन मुक्त करने के लिए आवश्यक होगी। इसलिए एशिया के औद्योगिक दिग्गज नेट जीरो को विकास को रोकने के बजाय इसे विकास को गति देने के एक रास्ते के रूप में देख सकते हैं।

यह रिपोर्ट 12 अप्रैल को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में लॉन्च की गयी। इस संदर्भ में अमिताभ कांत, भारत के G20 शेरपा ने कहा, “इस रिपोर्ट को जारी करने के लिए मैं एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट को बधाई देता हूं। यह रिपोर्ट अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों में कामकरने की ज़रूरत को दर्शाती है को बदलने की आवश्यकता को दर्शाता है जिनमें कार्बन एमिशन कम करना मुश्किल है, जैसे इस्पात और उर्वरक।

चूंकि भारत ने साल 2047 तक ऊर्जा-स्वतंत्र बनने और 2070 तक नेट जीरो हासिल करने का लक्ष्य रखा है, इसलिए हम ग्रीन हाइड्रोजन की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हैं। भारत, अपने विशाल रिन्यूबल एनेर्जी संसाधनों के साथ, दुनिया के लिए ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने का अवसर भी रखता है।

चारित कोंडा, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस के ऊर्जा विशेषज्ञ ने कहा, “तीन अनुप्रयोगों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत का ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइज़र बाजार महत्वपूर्ण वृद्धि के लिए तैयार है, जिसमें 2030 में 4 अरब डॉलर से बढ़कर 2050 तक 78 अरब डॉलर तक पहुंचने की अनुमानित सीएजीआर (CAGR) है। यह मजबूत दृष्टिकोण निवेशकों और नीति निर्माताओं को सकारात्मक संकेत देता है, जो नेट जीरो लक्ष्यों को पूरा करने में ग्रीन हाइड्रोजन की रणनीतिक भूमिका को साफ़ करता है।

Translated by Google 

Green Hydrogen – Due to efforts to achieve net zero targets by curbing carbon emissions in Asia’s four largest economies (China, India, Japan and South Korea), the demand for machines (electrolyzers) to produce green hydrogen (H2) is increasing. May increase from.

The market for green hydrogen electrolyzers for key industrial uses in these countries is projected to together reach $180 billion by 2050, according to a new report by the High-Level Policy Commission on Getting Asia to Net Zero, convened by the Asia Society Policy Institute.

The report, titled “Green Hydrogen to Decarbonize Asia’s Industrial Giants,” assesses the future potential and direction of electrolyzers needed to meet green hydrogen demand in China, India, Japan and South Korea.

The study, conducted by Global Efficiency Intelligence, looks at the role of green hydrogen in three priority industries – steel, ammonia and methanol – under different carbon emissions reduction scenarios. In these areas, green hydrogen can significantly reduce pollution by replacing carbon-emitting processes with the help of electrolysis powered by renewable energy.

If these four countries meet their stated net zero targets, the analysis projects huge growth in the market potential for green hydrogen electrolyzers for these three industries by 2050:
China: $85 billion by 2050, $22 billion in 2030
India: $78 billion by 2050, $4 billion in 2030
Japan: $9 billion by 2050, $1 billion in 2030
South Korea: $8 billion by 2050, $1 billion in 2030
Thus, it is estimated that the overall electrolyzer market will reach $180 billion by 2050, with an annual growth rate of up to 12% between 2030 and 2040. This is approximately five times the market capacity under normal trading conditions.

The total electrolyzer market size will be even larger as it also includes its uses for other industries. The study also breaks down the electrolyzer market potential for each of the four countries and three industries analyzed.

This report presents policy recommendations aimed at accelerating the development and adoption of green hydrogen and electrolyzer manufacturing. These targeted strategies for policymakers, industry players, investors and think tanks collectively aim to support a strong ecosystem for green hydrogen production and use in these countries towards a net zero industry.

Ali Hasanbegi, Founder, CEO and Research Director of Global Efficiency Intelligence, said, “H2-DRI: Using green hydrogen to make steel and produce green ammonia and methanol is essential to decarbonizing these key sectors. Our analysis Shows that the market for electrolyzers in these major Asian countries could be huge and those who take advantage of it will stand to gain significantly.

“These findings make clear how ambitious net zero targets can shape demand for new and important technologies like electrolyzers,” said Kate Logan, associate director of climate at the Asia Society Policy Institute.

This demand will be essential to decarbonizing the region and the world. Asia’s industrial giants may therefore see net zero as a way to accelerate growth rather than stifle it.

This report was launched at an event in New Delhi on 12 April. In this context, Amitabh Kant, India’s G20 Sherpa, said, “I congratulate the Asia Society Policy Institute for releasing this report. This report reflects the need to work on sectors of the economy that need to be transformed. In which carbon emissions are difficult to reduce, such as steel and fertilizers.

As India aims to become energy-independent by 2047 and achieve net zero by 2070, we recognize the important role of green hydrogen. India, with its vast renewable energy resources, also has the opportunity to produce green hydrogen for the world.

Charit Konda, energy expert at the Institute for Energy Economics and Financial Analysis, said, “The analysis of the three applications shows that India’s green hydrogen electrolyzer market is poised for significant growth, from $4 billion in 2030 to $78 billion by 2050. This strong outlook sends a positive signal to investors and policy makers, clarifying the strategic role of green hydrogen in meeting net zero targets.

Shares:
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *