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Short Service Commission अधिकारियों की अनदेखी पिछले 55 वर्षों से है जारी : कैप्टन हरीशपुरी

Short Service Commission, Harishpuri

 

Viral Sach : Short Service Commission – जय जवान, जय किसान के नारे वाले देश में किसान भी आंदोलन के द्वारा अपनी मांगे मनवाते हैं, और अब देश के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाला जवान भी अपनी मांगों को लेकर लम्बे समय से संघर्ष करते हुए स्वंय को निराशावादी महसूस करने लगा है।

सेना मे सैनिको के बीच भेदभाव की नीति क्यों ? शॉर्ट सर्विसड और परमानेंट कमीशंड में भेदभाव क्यों ? इन्हीं मुद्दों सेना से रिटार्यड जवान लम्बे समय से अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाने का प्रयास क्र रहे हैं।

शॉर्ट सर्विसड कमीशन्ड ऑफिसर्स – एसएससीओ की मांग को मजबूती से सियासी दलों के सामने उठाया जा रहा है की सरहद पर रहकर देश की सेवा करने वाले सैनिकों को सेवानिवृत्त होने के बाद नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है । सेवानिवृत्त सर्विसड कमीशन्ड अधिकारियों ने विभिन्न तरीकों से सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की है।

हालांकि शॉर्ट सर्विसड कमीशन्ड ऑफिसर्स की लंबित मांगों के सिलसिले में सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल जीपीएस विर्क ने चंडीगढ़ में हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है, जिसमें ओआरओपी तालिका के अनुसार सशस्त्र बलों में प्रदान की गई सेवाओं के लिए एसएससीओ को यथानुपात पेंशन के कानूनी निवारण के लिए कोर्ट से गुहार लगाई है।

शॉर्ट सर्विस कमीशन सेना निर्देश 62 और सेना निर्देश 64 द्वारा शासित है। नीति और यह संसद स्तर पर तय की जाती है। इसलिए केंद्र सरकार को तैयार करना चाहिए। संसद में कानून के माध्यम से नीति लागू की जानी चाहिएशॉर्ट सर्विसड कमीशन्ड ऑफिसर्स की मुहिम इन मुद्दों के इर्द गिर्द घूमती दिखाई दे रही है।

1) पहले एसएससीओ को कवर करने वाले नियम थे कि वे अनिवार्य रूप से 5 साल के लिए काम करेंगे और कुछ को बाद में अवशोषित कर लिया जाएगा, कुछ 5 साल के लिए विस्तार योग्य कार्यकाल पर होंगे और अन्य 5 साल के बाद ग्रेच्युटी दिए जाने पर सेवा से हटा दिए जाएंगे।

2) उस समय प्रचलित शर्त यह थी कि पेंशन के लिए पात्र होने के लिए 20 साल सेवा की आवश्यकता थी, लेकिन चूंकि एसएससीओ के विस्तार पर केवल 10 साल की अधिकतम अवधि ही सेवा दे सकती थी, वे इस तरह के पेंशन विनियमन के दायरे से बाहर थे और पेंशन के लिए पात्र नहीं थे।

3) 2016 में नियमित अधिकारियों के लिए ओआरओपी की घोषणा की गई थी और यही वह समय था जब इन इन्होंने सरकार के समक्ष यह मामला उठाया था कि सशस्त्र बलों में सेवा करने वाले एसएससीओ को उनकी सेवा की कार्य अवधिके आधार पर आनुपातिक पेंशन के लिए विचार किया जाना चाहिए। OROP तालिका जो 6 महीने से 33 वर्ष तक प्रभावी है।

4) सशस्त्र बलों से 8000 एसएससीओ जारी किए गए हैं जो लाभान्वित होंगे और वर्तमान में सेवारत एसएससीओ को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
5) पिछले 6 वर्षों से समय से पहले सेवानिवृत्त एसएस अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल जीपीएस, अध्यक्ष AISSCOWA (ऑल इंडिया शॉर्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर्स वेलफेयर एसोसिएशन) के साथ, सीओएएस, आरएम, एफएम, सीजेआई, फिर सीडीएस से इस मांग को उठाने के लिए बैठक कर रहे हैं।

6) 1965 से यूपीएससी के विज्ञापन में यह ज़िक्र किया गया था कि एसएससीओ के लिए पेंशन विचाराधीन है, लेकिन 2016 के बाद से जब ओआरओपी घोषित किया गया था, तब तक इस मांग को सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है। और स्थिति अधर में लटकी हुई है।

शॉर्ट सर्विसड कमीशंड अधिकारियों ने विभिन्न मंचों, प्रदर्शनों, ज्ञापनों एवं न्यायालय से भी अनुरोध किया है कि पूर्व सैनिकों को समानुपातिक पेंशन और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करके उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने के उचित प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

यह मौजूदा सेना में सेवारत SSCO को प्रोत्साहित करेगा जिससे उनका मनोबल बढ़ेगा। सरकार द्वारा इस मांग को पूरा करने में आपकी ईमानदार पहल सशस्त्र बलों को मजबूत करेगी और यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि सिस्टम में यह भेदभाव पिछले 55 वर्षों से जारी है।

13 फरवरी 2020 को भारत सरकार की एक राजपत्र अधिसूचना के तहत एसएससीओ जिन्हें ग्रेच्युटी के भुगतान पर सेवा से मुक्त कर दिया गया था, उन्हें भूतपूर्व सैनिक माना जाता था, लेकिन आज तक न तो पेंशन और न ही ईसीएचएस (भूतपूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना) चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई है।

पूर्व सैनिक अपने मुद्दों को बड़ी शिद्दत से उठा रहे हैं । SSCO की इन मांगों पर सियासी दल और सरकार कब तक ध्यान देते हैं यह देखने वाली बात होगी।

Short Service Commission

Translated by Google 

Viral Sach: Short Service Commission – In the country with slogans of Jai Jawan, Jai Kisan, farmers also get their demands accepted through agitation, and now the soldier who put his life on the line for the country is also struggling for a long time with his demands. Starting to feel pessimistic.

Why the policy of discrimination between the soldiers in the army? Why discrimination between short served and permanent commission? On these issues, retired soldiers from the army have been trying to convey their demands to the government for a long time.

The demand of Short Serviced Commissioned Officers – SSCO is being strongly raised in front of political parties as to why the soldiers who served the country by staying on the border are being ignored after retirement. Retired serviced commissioned officers have tried to convey their point to the government in various ways.

However, in connection with the pending demands of Short Serviced Commissioned Officers, a Public Interest Litigation (PIL) has been filed by Retd. Lt. Col. GPS Virk in the Haryana High Court at Chandigarh, seeking pro-rata compensation to SSCOs for services rendered in the Armed Forces as per OROP Table. Have appealed to the court for legal redressal of pension.

Short Service Commission is governed by Army Instruction 62 and Army Instruction 64. Policy and this is decided at the Parliament level. That’s why the central government should prepare. The policy should be implemented through legislation in the Parliament. The campaign of Short Serviced Commissioned Officers seems to be revolving around these issues.

1) Earlier the rules covering SSCOs were that they would mandatorily serve for 5 years and some would be absorbed later, some would be on extendable tenure for 5 years and others would be given gratuity after 5 years But will be removed from service.

2) The prevailing condition at that time was that 20 years of service was required to be eligible for pension, but since on extension SSCOs could serve only a maximum period of 10 years, they were out of the purview of such pension regulation. were outside and were not eligible for pension.

3) OROP was announced for regular officers in 2016 and it was at that time that they took up the matter with the government to consider SSCOs serving in the Armed Forces for proportionate pension based on their length of service. should be done. OROP table which is effective from 6 months to 33 years.

4) 8000 SSCOs have been released from the Armed Forces who will be benefited and currently serving SSCOs will be encouraged.
5) Premature Retired SS Officer from last 6 years with Lt Col GPS, President AISSCOWA (All India Short Service Commission Officers Welfare Association), COAS, RM, FM, CJI, then meeting with CDS to raise this demand have been

6) It was mentioned in UPSC advertisement from 1965 that pension for SSCOs is under consideration, but since 2016 when OROP was declared, this demand has not been accepted by the government. And the situation hangs in the balance.

The Short Serviced Commissioned Officers have urged various forums, demonstrations, memorandums and also in the court that ex-servicemen should be given proper incentives to lead a dignified life by providing commensurate pension and medical facilities.

This will encourage the SSCOs serving in the existing army thereby boosting their morale. Your sincere initiative in meeting this demand by the government will strengthen the armed forces and will prove to be an important milestone as this discrimination in the system has been continuing for the last 55 years.

SSCOs who were released from service on payment of gratuity were treated as ex-servicemen under a gazette notification of the Government of India on 13 February 2020, but neither pension nor ECHS (Ex-Servicemen Contributory Health Scheme) till date Medical facilities have been provided.

Ex-servicemen are raising their issues with great enthusiasm. It will be a matter to be seen how long the political parties and the government pay attention to these demands of SSCO.

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