Viral Sach – Mrs. Kanta – मेरा जन्म वर्ष 1939 में हिंदुस्तान के (अब पाकिस्तान) वहोवा कस्बा, जिला डेरा गाज़ी खान में हुआ | मेरे पिता स्वर्गीय श्री पुन्नू राम डुडेजा, चीनी एवं गेंहूँ के बहुत बड़े व्यापारी थे | माँ स्वर्गीया श्रीमति तुलसी बाई धार्मिक विचारों से ओतप्रोत थी | नित्य प्रति गुरु ग्रन्थ साहब का पाठ करना उनका नियम था |
मेरे चार बहनें एवं एक भाई है | भाई मुझसे छोटा है जिसका नाम दीनानाथ डुडेजा है, जो आब मोदीनगर (यूपी) में रहते है | मुझसे बढ़ी तीन बहनें थी, जो दो बड़ी बहनों का विवाह नुतकाणा जो अब पाकिस्तान में है हुआ |
मैंने वहोवा में ही दूसरी तक पढाई की | हमारे घर के पास आनंदपुर साहब की कुटिया थी | उस समय वहाँ महात्मा तग्गा राम जी सेवा करते थे | मेरा जुड़ाव बचपन से ही सत्संग से रहता था | मैं प्रतिदिन कुटिया सत्संग सुनने जाया करती थी |
मैं कक्षा तीसरी में थी कि 14 अगस्त को 1947 को पाकिस्तान बनने की घोषणा हुई और पता चला कि दंगे-फसाद शुरू हो गये है | हमें उस दयनीय स्थिति में अपना घर, व्यापार सब कुछ छोड़कर आना पड़ा | जो लोग बड़े घुल-मिलकर रहते थे, अचानक ही हमारे खून एवं इज्जत के प्यासे हो गए |
वहाँ से आने के बाद हम सबसे पहले कैथल स्टेशन पर लगभग 2 से 3 महीने रुके | जो सरकार देती उसी से गुजारा करते | कैथल के बाद हमें जींद और फिर रोहतक भेज दिया | वहाँ मेरे पिताजी के मित्र जो हमसे बिछड़ गये थे मिले और वह हमें फिरोज़पुर झिरका ले आये | मेरे पिताजी ने अपने चचेरे भाईयों श्री नौबत राम एवं श्री होवन दास के साथ बड़ी मेहनत करके अपना व्यापार जमाया |
यहाँ आकर मुझे तीसरी कक्षा में दाखिला मिला | इत्तेफाक की बात है कि जिस विद्यालय में मेरा दाखिला हुआ वहाँ मुझे अध्यापिका वही मिली जो विभाजन से पूर्व थी | मैं पढाई में बहुत अच्छी थी | माता-पिता के साथ कठिनाई के वक्त उनका पूरा हाथ बांटती थी | मेरा विवाह 01-07-1955 को
श्री उत्तम चन्द अरोड़ा जी के साथ हुआ और हम पहले भिवानी और फिर गुड़गाँव सैटल हो गये |
मुझ पर मेरे गुरु महाराज, प्रात: स्मरणीय, अनंत विभूषित महंत मनोहर दास जी (बगीची बाबा माधव दास) की अपार कृपा हुई और दुःख के समय उन्होंने गुरु परम्परा को निभाते हुए, वर्ष 1972 में शिवाजी नगर, गुरुग्राम में मंदिर श्री बालाजी (हनुमान जी) महाराज की सथापना अपने कर-कमलों से की और दीक्षा प्रदान कर दरबार लगाने के लिए आदेश दिया व तभी से गुरुदेव जी की आज्ञा एवं हनुमान जी महाराज, मेरे इष्टदेव की कृपा से भभूति के रूप में दरबार में भक्तजनों को प्रसाद बांटा जाता है |
मेरी हार्दिक इच्छा यही है कि मैं इसी प्रकार जितना भी मुझसे बन सके सभी की सेवा करती रहूँ एवं मेरे इष्टदेव हनुमान जी महाराज सभी के मनोरथ पूरे करते रहे |
Translated by Google
Viral Sach – Mrs. Kanta – I was born in the year 1939 in Wahowa town, District Dera Ghazi Khan of India (now Pakistan). My father, Late Shri Punnu Ram Dudeja, was a big trader in sugar and wheat. Mother Swargiya Shrimati Tulsi Bai was imbued with religious thoughts. It was his rule to recite Guru Granth Sahib daily.
I have four sisters and one brother. Brother is younger than me whose name is Dinanath Dudeja, who now lives in Modinagar (UP). I had three sisters who were older than me, of which two elder sisters were married in Nutkana which is now in Pakistan.
I studied till second only in Vahova. Anandpur Saheb’s cottage was near our house. At that time Mahatma Tagga Ram used to serve there. My association was with satsang since childhood. I used to go to Kutia every day to listen to satsangs.
I was in class III that on August 14, 1947, it was announced that Pakistan would be formed and it came to know that riots had started. We had to leave our home, business and everything in that pathetic condition. People who used to live in harmony, suddenly became thirsty for our blood and honour.
After coming from there, we first stayed at Kaithal station for about 2 to 3 months. We used to live with whatever the government gave us. After Kaithal we were sent to Jind and then to Rohtak. There my father’s friends who had been separated from us met and brought us to Firozpur Jhirka. My father along with his cousins Mr. Naubat Ram and Mr. Hovan Das established their business by working hard.
After coming here, I got admission in the third class. It is a matter of coincidence that in the school where I got admission, I got the same teacher who was there before the partition. I was very good in studies. During the time of difficulty with the parents, they used to share their full hand. My marriage on 01-07-1955
Happened with Shri Uttam Chand Arora ji and we first settled in Bhiwani and then in Gurgaon.
I was greatly blessed by my Guru Maharaj, Pratah Smriti, Anant Vibhushit Mahant Manohar Das Ji (Bagichi Baba Madhav Das) and following the Guru Parampara, in the year 1972, at Shivaji Nagar, Gurugram, he built the temple Shri Balaji (Hanuman G) Maharaj was established with his tax-lotus and ordered to set up the court after giving initiation and since then by the order of Gurudev ji and by the grace of Hanuman ji Maharaj, my presiding deity, Prasad is distributed to the devotees in the court in the form of Bhabhuti. |
It is my heartfelt wish that I continue to serve everyone in the same way as much as I can and my presiding deity Hanuman ji Maharaj fulfills everyone’s wishes.
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