Viral Sach – किसान आंदोलन पर वरिष्ठ पत्रकार Sandeep Mishra ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की अश्कों की अपनी रवानी है, अश्कों की अपनी कहानी है।
हर आंसू कुछ कहता है जो खामोश आँखों से बहता है। यह अश्कों का कमाल है जो आज फ़िर किसानों का सैलाब है। गाजीपुर में घिरे टिकैत के आँखों से जब बेबसी आंसू बन छलक पड़ी, तो उमड़ पड़ी हलधरों की सुनामी।
सिसौली छपरोली क्षेत्र के चूल्हों को आँसुओं ने ठंडा कर दिया और सीने में आग धधक उठी मृत्युशैया पर सोया आंदोलन दावानल की तरह आंसुओं की धार देख धधक उठा भभक और उठ खड़ा हुआ एक बार फिर किसान आंदोलन। जिसे कुचलने को क्या-क्या जतन नहीं किए सियासत के शूरवीरों ने। आँसुओं की इस क्रांति को मुनव्वर राणा के शेर से बेहतर भला कोई क्या बयां करेगा “एक आंसू ही हुकूमत के लिए खतरा है, तुमने देखा नहीं आंखों का समंदर होना।”
रोये तो बड़े टिकैत चौधरी महेंद्र भी थे वह भी एक बार नहीं तीन तीन बार, बात 25 अक्टूबर 1988 वोट क्लब दिल्ली की है टिकैत साहब के नेतृत्व में 14 राज्यों से पांच लाख किसान दिल्ली में डेरा डाले खड़ा था जब दमनकारी सरकार ने किसानों पर आंसू गैस के गोले फेंके और लाठियां भांजी इस दर्द ने मंजर को चौधरी महेंद्र भावुक हो उठे और बोल उठे “मैं किसानों के साथ यह नहीं होने दूंगा।
27 जनवरी 1988 को मेरठ कमिश्नरी का घेराव जब किसानों ने किया तो फोर्स ने किसानों को घेर लिया, तब भी किसानों के दर्द पर कराह उठे थे बड़े टिकैत साहब आंसू बह निकले थे यह दूसरी बार उनकी आंखों से समंदर उतरता हुजूम ने देखा था।
मार्च 1988 में ही रजबपुर जेल भरो आंदोलन के समय भी भावुक टिकैत अश्कों को पलकों के घेरे में रोक ना पाए थे। सच ही कहा है शायर मोहम्मद अल्वी ने “रोज अच्छे नहीं लगते आंसू, खास मौकों पर ही मजा देते हैं।”
रोए तो किसानों के मसीहा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह भी थे, बात 1985 की है जब छपरौली विधानसभा में अपनी बेटी सरोज वर्मा की हार उन्हें नजर आने लगी। चौधरी साहब कभी प्रचार में नहीं उतरते थे लेकिन बिटिया को हारता देख वो खुद को ना रोक पाए और एक थाने के बाहर बैठकर भावुक हो गए उन्हें देख बड़े नेता बोल उठे म्हारा चौधरी तो रोन लाग रहा है।
फिर क्या था आंसुओं ने हार की तस्वीर को जीत में बदल दिया सोमपाल शास्त्री मामूली अंतर से चुनाव हार गए। बशीर बद्र साहब ने गजब लिखा है “उसने छू कर मुझे पत्थर से इंसान किया, मुद्दतो बाद मेरी आंख से आंसू आया।”
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर के गोल घेरे में रोए तो तीन बार के सांसद योगी आदित्यनाथ भी थे फफक-फफक कर, फूट-फूट कर रोते रोते बताते रहे पहली बार 25 हज़ार वोट से जीता, दूसरी बार 50 हज़ार वोट से जीता और तीसरी बार डेढ़ लाख से जीता तीन जीत गिनाने के बाद वो पूछ रहे थे मै सदन का सदस्य हूँ भी कि नहीं।
वो खूब रोए खुद के संरक्षण के लिए और संरक्षण मांगने के लिए फूट कर रोते योगी को पूरे देश में सन् 2007 में लोकसभा के लाइव चैनल पर देश और दुनिया ने सरेआम देखा। सच है ये भी इसी नरेंद्र मोदी जी भी रो पडे जब आडवाणी जी ने सन् 2014 अपने संबोधन में कहा कि “मोदी जी ने पार्टी पर बड़ी कृपा की। मोदी ने पार्टी को भारत मां की तरह अपनी मां कहा और रो पड़े।
मोदी जी फेसबुक के मालिक मार्क जकरबर्ग को दिए अपने मशहूर साक्षात्कार में भी आंसुओं की धार को नहीं रोक पाए अपनी मां की गुरबत, हिफाजत, ताकत बताते हुए आंसुओं से तर हो गए। बात बात पर किसको कब रोना आ जाए ये कहा नहीं जा सकता।
जजबातों का सैलाब जिंदगी की जुस्तजू अपमान का घूंट कभी भी किसी को आंसुओं की सौगात दे सकता है। योगी संरक्षण मांगने के लिए रोए तो मोदी अपने दल के लिए रोए, चौधरी चरण सिंह अपनी बिटिया को जिताने के लिए रोए इतिहास के पन्नों में सबके आंसू और आँसुओ के मायने दर्ज हैं। उनके आंसू आंसू के कारण और टिकैत के पिता-पुत्र के बहे आंसुओ में बडा फर्क है वो खुद के लिये अपने दल के लिये अपनी बेटी तो अपने माँ के नाम पर टपके अश्क थे।
जबकी टिकैत के आँखों से गिरा पानी हल हक किसान की आन बान शान के लिये समय समय पर बरसे। वो न खुद के लिए रोए, ना अपने दल के लिए रोए, ना संरक्षण मांगने के लिए रोए ना अपने बचाव के लिए आँखों को आंसुओं से भर लिया बल्कि जब भी रोए किसान की हिफाजत के लिए हलधर के हक के लिए रोए। राकेश टिकैत के आंसू जब किसानों के लिए उनकी आबरू, उनके अधिकार के लिए बहे तो टिक गए टिकैत के चाहने वाले।
आंसू धरना स्थल पर रहा था और बहाव पूरे देश मे फैल रहा था। वो बेशकीमती बेबस अश्क सुनामी बन गए और महज 40 सेकंड में निपटा हुआ मान लिया गया किसान आंदोलन लौट आया दुगुनी ताकत, जोश, हौसले के साथ टिकैत के आँखों से छलके दर्द कमाल कर गए। गालिब का शेर जिंदा हो गया। “रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं कायल, जब आंख से ही नहीं टपका तो फिर लहू क्या है?”
Translated by Google
Viral Sach – Expressing his views on the farmer’s movement, senior journalist Sandeep Mishra said that tears have their own path, tears have their own story.
Every tear says something that flows from silent eyes. It is a wonder of tears that today again there is an inundation of farmers. When Tikait, who was besieged in Ghazipur, burst into tears of helplessness, a tsunami of haldhars erupted.
Tears cooled the stoves of Sisauli Chhaproli area and the fire blazed in the chest, the movement slept on the death bed, seeing the edge of tears, the farmer’s movement flared up and stood up once again. What efforts were made by the political heroes to crush him. What can anyone describe this revolution of tears better than Munawwar Rana’s lion “A single tear is a threat to the government, you have not seen the ocean of eyes.”
Big Tikait Chaudhary Mahendra also cried, that too not once but three times, it is about 25 October 1988 vote club Delhi, under the leadership of Mr. Tikait, five lakh farmers from 14 states were camping in Delhi when the oppressive government shed tears on the farmers. Throwing gas shells and sticks, this pain made Manjar Ko Chaudhary Mahendra emotional and said, “I will not let this happen to the farmers.
On January 27, 1988, when the farmers laid siege to the Meerut Commissionerate, the force surrounded the farmers, even then the farmers were moaning about the pain, big Tikait sahib was in tears;
In March 1988 itself, even during the Rajbpur Jail Bharo movement, emotional tickets could not stop the tears in the circle of eyelashes. The poet Mohammad Alvi has rightly said, “Tears don’t look good everyday, they give fun only on special occasions.”
Former Prime Minister of India Chaudhary Charan Singh was also the messiah of farmers when he cried, it is about 1985 when he started seeing the defeat of his daughter Saroj Verma in Chhaprauli assembly. Mr. Chaudhary never used to campaign, but seeing his daughter losing, he could not stop himself and got emotional sitting outside a police station.
What was it then, tears turned the picture of defeat into victory. Sompal Shastri lost the election by a slight margin. Bashir Badr Sahab has written a wonderful “He made me human from stone by touching me, tears came from my eyes after a long time.”
Three-time MP Yogi Adityanath was also crying in the circle of the temple of the world’s biggest democracy, crying bitterly, he kept telling that he won by 25 thousand votes for the first time, won by 50 thousand votes for the second time and Won by 1.5 lakh for the third time. After counting three wins, he was asking whether I am a member of the house or not.
He cried a lot for his own protection and for asking for protection, the country and the world saw Yogi openly crying on the live channel of the Lok Sabha in 2007. It is true that even Narendra Modi ji cried when Advani ji said in his address in 2014 that “Modi ji has done a great favor to the party. Modi called the party his mother like Mother India and wept.”
Modi ji could not stop the flow of tears even in his famous interview given to Facebook owner Mark Zuckerberg, he broke down in tears telling his mother’s poverty, security and strength. It can’t be said when someone will feel like crying on every matter.
The flood of emotions, the jostle of life, a sip of insult can give someone the gift of tears at any time. When Yogi cried for seeking protection, Modi cried for his party, Chaudhary Charan Singh cried to make his daughter win, the meaning of everyone’s tears is recorded in the pages of history. There is a big difference between the reason for his tears and the tears shed by Tikait’s father and son. He was shedding tears for himself, for his party, in the name of his daughter and his mother.
When water fell from the eyes of Tikait, it rained from time to time for the pride and glory of the farmer. He neither cried for himself, nor cried for his party, nor cried for seeking protection, nor filled his eyes with tears for his own protection, but whenever he cried, he cried for the rights of Haldhar, for the protection of the farmer. When Rakesh Tikait’s tears flowed for his respect for the farmers, for their rights, the fans of Tikait stood firm.
Tears remained at the picket site and the flow was spreading across the country. Those precious helpless tears became a tsunami and the farmer’s movement, which was considered settled in just 40 seconds, returned with double the strength, enthusiasm, courage, the pain overflowing from Tikait’s eyes was amazing. Ghalib’s lion became alive. “We are not convinced of running in the veins, when it does not drip from the eyes, then what is blood?”
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